|| ॐ सूर्याय नमः ||
आज मकर संक्रान्ति के त्यौहार की सभी सज्जनों को हार्दिक शुभकामनाएँ। वसन्त के आगमन के दूत और सूर्योपासना के इस पर्व पर मैंने विचारा की क्यों न प्रकृति की सृजन-शक्ति, हिरण्यगर्भरूप सूर्य देव को अर्पण करते हुए कुछ साझा करूँ।
१९८२ के मराठी चलचित्र उम्बरठा का यह प्रार्थना काव्य-गीत मुझे अत्यन्त प्रिय है। यूँ तो मराठी मेरी मातृभाषा नहीं है, न ही मुझे आती है, किन्तु कवि श्री वसन्त बापट की लेखनी से उपजी यह अद्भुत शब्दरचना समझना किसी भी हिंदी भाषी के लिए सरल ही होगा। पण्डित हृदयनाथ मंगेशकर का संगीत और लता मंगेशकरजी की सुमधुर वाणी कविता का रस ऐसे बढ़ाती है की श्रोता मुग्ध हो जाता है।
अतः आज यही प्रार्थना सूर्य देव के चरणों में अर्पित करता हूँ। साथ में गीत के हिन्दी अनुवाद/भावार्थ का मेरा संक्षिप्त प्रयास भी प्रस्तुत है।
गगन सदन तेजोमयतिमिर हरून करुणाकरदे प्रकाश देई अभय!
छाया तव, माया तवहेच परम पुण्यधामवार्यातून तार्यांतुनवाचले तुझेच नामजगजीवन, जनन-मरणहे तुझेच रूप सदय
वासंतिक कुसुमांतूनतूच मधुर हासतोसमेघांच्या धारांतुनप्रेमरूप भासतोसकधि येशील चपलचरण?वाहिले तुलाच हृदय।
भवमोचन, हे लोचनतुजसाठी दोन दिवेकंठातील स्वर मंजुळभावमधुर गीत नवेसकलशरण मनमोहनसृजन तूच, तूच विलय।
प्रार्थना की शब्दरचना इसी वीडियो से ली है।
हिन्दी अनुवाद एवम् भावार्थ :-
गगन सदन तेजोमय
तिमिर हरो करुणाकर
दे प्रकाश देऽ अभय।
छाया तू, माया तू
तू ही परम पुण्यधाम।
वायु में और तारों में
पढ़ते तेरा ही नाम।
जगजीवन, जनन-मरण
सब तेरे ही रूप, सदय।
वासन्ती कुसुमों में
तेरा ही मधुर हास;
मेघों की धारा में
प्रेमरूप तेरा आभास।
कब आएगा, चपल-चरण?
तुझे अर्पित ये हृदय।
भवमोचन, ये लोचन
तेरे निमित्त दो दिये;
कण्ठ में ये स्वर-मञ्जुल
मधुर भाव गीत नए।
सकल-शरण, मनमोहन
सृजन तू, तू ही विलय।
(अनुवाद - निमित्त)
भावार्थ :-
सम्पूर्ण गगन यानी आकाश जिसका सदन यानी घर है, जो तेज से परिपूर्ण है अर्थात् ज्योतिर्मय, शक्तिमान है,जो करुणावान है, वो मेरा अन्धकार दूर करे।मुझे प्रकाश दे, मुझे अभय दे।
तू ही छाया है, तू ही माया भी है।तू ही तो परम धाम है।वायु में, तारों में, चहुँओरजिसका नाम सभी बाँचते अर्थात् पढ़ते हैं (यानी जो सम्पूर्ण सृष्टि में विद्यमान है),ये संसार, जीवन, जन्म और मृत्युसब तेरे ही रूप हैं, हे सहृदय (दयालु)।
वासन्ती कुसुमों में अर्थात् वसन्त ऋतु में खिलने वाले फूलों मेंतेरा ही मधुर हास अर्थात् स्मित, मुस्कुराहट है।मेघों की (जल)धारा अर्थात् वर्षा भीतेरे ही प्रेम का रूप है, तेरे ही प्रेम का आभास है।हे चपलचरण अर्थात् हे चञ्चल चरणों वाले, हे गतिमान, तू कब (इस हृदय में) आएगा?मेरा ये हृदय तुझे अर्पित है।
हे भवमोचन अर्थात् हे भव (संसार) से मोचन करने वाले (भावार्थ: सांसारिक बन्धनों से छुड़ाने वाला), ये दोनों लोचन (आँखें)(मेरे द्वारा) तुझे समर्पित दो दीये हैं;मेरे कण्ठ से निकले ये सुन्दर स्वर,मधुर भाव लिखते ये नए गीत भी तेरे ही लिए हैं।हे सकलशरण (अर्थात् जो सभी की अन्तिम शरणस्थली है, जिसकी शरण में सभी जाते हैं), हे मनमोहन अर्थात् हे मन को मोहने वाले,तू ही सृजन है, और तू ही विलय भी है।
पुनश्च : मुझे मराठी नहीं आने के कारण सम्भव है की अनुवाद अथवा अर्थ-व्याख्या में कहीं कोई त्रुटि हो। यदि आपके ध्यान में ऐसी कोई त्रुटि आई हो, तो अवश्य बताएँ ताकि मैं ठीक कर सकूँ।